केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तर्ज पर अब क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) में भी अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर चुकी है। इसके लिए वित्त मंत्रालय ने इसी महीने 14 सितंबर को अधिसूचना भी जारी कर दी है। अधिसूचना के मुताबिक केंद्र, ग्रामीण बैंकों में अपनी हिस्सेदारी कम करेगा। केंद्र का हिस्सा ग्रामीण बैंकों में 50% है। इसमें 34% निजी क्षेत्र को बेचा जाएगा। केंद्र का शेयर ग्रामीण बैंकों में अब 16 फीसदी ही बचेगा। शेयर बेचने के लिए ग्रामीण बैंकों को भी शेयर बाजार में सूचीबद्ध कर आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफर) लाया जाएगा।
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अब दिक़्क़त होगा इन लोगों पर
प्रायोजक बैंकों में ग्रामीण बैंकों का विलय ही बेहतर विकल्प निजीकरण का सीधा असर खेती-किसानी को मिलने वाले ऋण पर पड़ेगा। ग्रामीण बैंक का गठन किसानों को सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए हुआ था। निजीकरण के बाद शेयरधारक को किसानों के कल्याण से कोई मतलब नहीं रहेगा। उनका केवल अपने मुनाफे से वास्ता रहेगा। सरकार यदि ग्रामीण बैंकों की हालात सुधारना चाहती है तो प्रायोजक बैंकों में इनका विलय ही बेहतर विकल्प है। -डीएन त्रिवेदी, ज्वाइंट फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के संयोजक
ग्रामीण बैंक का गठन और उद्देश्य
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक एक्ट 1976 के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, खेतिहर मजदूरों और कारीगरों को ऋण मुहैया कराने के लिए ग्रामीण बैंकों का गठन किया गया था। 2005 तक देश में ग्रामीण बैंकों की संख्या 196 थी। बैंकों के विलय के बाद फिलवक्त देश में 43 और बिहार में दो ग्रामीण बैंक हैं। रीजनल रूरल बैंक एक्ट में 2015 में संशोधन कर सरकार ने इन बैंकों के लिए पूंजी जुटाने के नए रास्ते खोल दिए थे। इसके तहत ग्रामीण बैंकों को केंद्र, राज्यों और प्रायोजक बैंकों के अलावा अन्य स्रोतों से पूंजी जुटाने की अनुमति दी गई है।
बिहार में इस बैंक के लोग, खाते, क्रेडिट कार्ड और लोन
- दोनों बैंक ने 7 लाख किसान क्रेडिट कार्ड पर 6726 करोड़ ऋण दिए हैं।
- बिहार के बैंकिंग सेक्टर में दोनों बैंकों का मार्केट शेयर यह 9.65% है।
- एसवीजीवी और यूवीजीबी में बिहार के लोगों का 33.42 लाख खाते हैं।