Kohinoor, Kohinoor History  कोहिनूर हीरे को लेकर अक्सर यह बात सुनी जाती है कि इसे भारत से चुराया गया और फिर इंग्लैंड ले जाकर अंग्रेजों ने इस पर कब्जा किया। इस हीरे के कई मालिकों का नाम इतिहास में आया है, जैसे कि अलाउद्धीन खिलजी, बाबर, अकबर, और महाराजा रणजीत सिंह।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस हीरे का असली मालिक कौन था? आइए इस रहस्य को हल करें।

कोहिनूर का इतिहास

कोहिनूर हीरा लगभग 800 साल पहले आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदान से निकला था। उस समय इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना गया था, जिसका कुल वजन 186 कैरेट था। हालांकि उसके बाद इसे कई बार तराशा गया और अब इसका मूल रूप 105.6 कैरेट है। यह हीरा अब भी दुनिया का सबसे बड़ा तराशा हीरा है।

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कोहिनूर का पहला मालिक

800 साल पुराने इस हीरे के पहले मालिक काकतिय राजवंश थे। इस हीरे को अपनी कुलदेवी भद्रकाली की बांईं आंख में लगाया गया था। फिर 14वीं शताब्दी में अलाउद्धीन खिलजी ने इसे लूट लिया और बाद में मुगल सम्राट बाबर ने इसे हथिया लिया।

कोहिनूर की यात्रा

1738 में ईरानी शासक नादिर शाह ने मुगलों पर हमला किया और कोहिनूर को भारत से ले जाकर इसे अपनी राजधानी में रखा। इसे नाम कोहिनूर दिया गया, जिसका मतलब होता है ‘रोशनी का पहाड़’।

कोहिनूर का अंग्रेजों के हाथों में जाना

1849 में सिखों और अंग्रेजों के बीच दूसरा युद्ध हुआ और सिखों का शासन समाप्त हो गया। इसके बाद कोहिनूर को अंग्रेजी महारानी विक्टोरिया को सौंप दिया गया। इसे बकिंघम पैलेस में लेकर जड़वा दिया गया, जहाँ यह अब भी दर्शकों का मोह बना हुआ है।

इस प्रकार, कोहिनूर हीरे का असली मालिक न केवल भारतीय इतिहास का हिस्सा रहा, बल्कि उसकी कहानी अंग्रेज और मुगल साम्राज्य के साथ जुड़कर विश्व इतिहास में भी गहराई से प्रस्तुत है।

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